अभिनव न्यूज, नेटवर्क। हरियाणा में चुनाव की डुगडुगी बज चुकी है. इस बार भी राज्य में दो ही दल सत्ता के बड़े दावेदार दिख रहे हैं. हालांकि राज्य में कुछ क्षत्रप हैं तो कुछ निर्दलीय प्रत्याशी भी, जो किसी भी दल के लिए चुनाव के बाद सत्ता के समीकरण को बनाने और बिगाड़ने की कुव्वत रखते हैं. हालिया लोकसभा चुनावों में राज्य में विपक्षी वोटों के एकजुट होने से भाजपा की सीटों की संख्या घटकर पांच रह गई और बची सीट कांग्रेस के खाते में चली गईं. सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं को उम्मीद है कि अब छोटी पार्टियां अधिक वोट हासिल करेंगी, जैसा कि अक्सर विधानसभा चुनावों में होता है.
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य में सभी 10 सीटों पर जीत हासिल की थी. कांग्रेस नेताओं को विश्वास है कि एक अक्टूबर को होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दों की अनुपस्थिति में भाजपा से दूरी रखने वाले मतदाताओं की लामबंदी और तेज होगी. इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का गठबंधन, पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत सिंह चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जजपा) और 2019 में जीत हासिल कर चुके कई निर्दलीय विधायक राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
जजपा और इनेलो (जिसका नेतृत्व दुष्यंत सिंह चौटाला के चाचा अभय सिंह चौटाला कर रहे हैं) तथा विधायक बलराज कुंडू जैसे निर्दलीय उम्मीदवारों को मुख्य रूप से जाटों से समर्थन प्राप्त है. वहीं भाजपा का मानना है कि वे गैर-भाजपा वोटों में सेंध लगाएंगे. हरियाणा में 26 प्रतिशत से ज्यादा आबादी के साथ जाट सबसे बड़ा जाति समूह है. वहीं, बसपा का समर्थन मुख्य रूप से दलितों के एक वर्ग तक ही सीमित है. हाल में PTI के साथ एक इंटरव्यू में कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने क्षेत्रीय दलों को वोट कटवा करार दिया था. उन्होंने कहा था कि कोई भी इन पाटियों को वोट नहीं देगा.
जजपा को लोकसभा चुनाव में एक प्रतिशत से भी कम वोट मिले थे. पिछले विधानसभा चुनाव में उसे करीब 15 प्रतिशत वोट और 10 सीट मिली थीं. जजपा अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, क्योंकि अब उसके पास केवल तीन वफादार विधायक बचे हैं, जिनमें दुष्यंत सिंह चौटाला और उनकी मां नैना सिंह चौटाला शामिल हैं. विधानसभा चुनाव अभियान में शामिल भाजपा नेताओं ने भरोसा जताया है कि चुनाव की तारीख नजदीक आने के साथ पार्टी का पारंपरिक गैर-जाट वोट लामबंद होगा, जिससे उसे तीसरी बार सत्ता में बने रहने में मदद मिलेगी. गौरतलब है कि राज्य विधानसभा में 90 सीटें हैं.
अगर भाजपा कांग्रेस के भीतर गुटबाजी से लाभ उठाने की उम्मीद कर भी रही है, लेकिन पार्टी के लिए चिंता का विषय यह है कि विधानसभा चुनाव में उसका वोट प्रतिशत अक्सर लोकसभा चुनावों की तुलना में काफी कम हो जाता है. वर्ष 2014 में हरियाणा में पहली बार बहुमत हासिल करने के बाद, भाजपा 2019 में 40 सीटों पर सिमट गई और उसने जजपा के समर्थन से सरकार बनाई. भाजपा ने हरियाणा चुनाव के लिए केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को चुनाव प्रभारी और त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लव कुमार को सह-प्रभारी बनाया है.
गौरतलब है कि हरियाणा में कुल 2 करोड़ 1 लाख वोटर्स हैं. प्रदेश में 4 लाख 52 हजार वोटर्स ऐसे हैं जो पहली बार वोट देंगे. इसके अलावा 2.54 लाख 85 वर्ष से अधिक सीनियर सिटिजन और 1.5 लाख दिव्यांग मतदाता पंजीकृत हैं. 10,381 से अधिक मतदाता 100 साल से अधिक उम्र के हैं. राज्य में नामांकन की आखिरी तारीख 12 सिंतबर तय की गई है. 16 सितंबर तक उम्मीदवारी वापस ली जा सकती है.