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Sunday, November 24

राष्ट्रपति चुनाव : क्या इस बार आडवाणी या जोशी के नाम पर विचार किया जाएगा ?

अपनी बात : संजय आचार्य ‘वरुण’

भारत के वर्तमान राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद का कार्यकाल आगामी 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है। 15 जून 2022 से राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया आरम्भ हो जाएगी। स्वाभाविक बात है कि राष्ट्रपति चुनाव की बात चलने पर सत्तारूढ़ पार्टी को जन्म देने वाले देश के सबसे वरिष्ठतम नेता और भारत के पूर्व गृहमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी की सेवाओं का स्मरण अवश्य हो आता है। आज जो पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता का सुख भोग रही है, पार्टी का ये सुनहरा भविष्य तैयार करने में आडवाणी जी ने अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया था किन्तु जब लोगों ने उम्मीद की कि अब देश के सर्वोच्च पद के लिए आडवाणी जी का नाम प्रस्तुत किया जाएगा तब पता नहीं कौनसी संवैधानिक अड़चनें थी कि आडवाणी जी ही नहीं पार्टी के अनेक वरिष्ठ एवं पुराने नेताओं को भी टाल दिया गया। वर्तमान में यद्यपि श्री लालकृष्ण आडवाणी लगभग 95 वर्ष की वय के हो गए हैं तथापि यदि वे पूर्णतः स्वस्थ हों तो पार्टी को उन्हें राष्ट्रपति बनाकर उनका ऋण उतारना चाहिए। यदि आडवाणी जी अब अपने नाम के लिए सहमत न हों तो डॉ. मुरली मनोहर जोशी के रूप में उनका एक बेहतरीन विकल्प भाजपा के पास उपलब्ध है। डॉ. जोशी का योगदान भी भारतीय जनता पार्टी के लिए अविस्मरणीय रहा है। अटल जी और आडवाणी जी के साथ ही डॉ. जोशी ने पार्टी के लिए जीवन भर पूर्ण समर्पण से कार्य किया है। वे विद्वान है और भारतीय जीवन दर्शन के प्रखर प्रवक्ता हैं। यह बात कुछ लोगों को अखर सकती है कि कई वर्षों पहले तक कांग्रेस को परिवारवादी पार्टी कहने वाली भाजपा आज स्वयं व्यक्तिवादी पार्टी बनकर रह गई है। जिन लोगों ने पार्टी को जन्म दिया, पाला- पोसा, उसे अपने पसीने से सींचा, आज वे लोग उम्र के इस पड़ाव पर अपनी ही पार्टी में उपेक्षित हैं, निश्चित रूप से वे यह विचार तो कर ही रहे होंगे कि उनसे गलती आखिर कहाँ हुई ?

कांग्रेस रही इस मामले में सजग

प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस के तारणहार के रूप में कार्य किया था, डॉ. मनमोहन सिंह सरकार के दूसरे कार्यकाल में जब पार्टी ने देखा कि अब तीसरी बार सत्ता प्राप्ति संभव नहीं है तो पद पर होते हुए भी श्री प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना दिया, यह एक वरिष्ठ नेता की पार्टी को दी गई समर्पित सेवाओं का सम्मान था, और प्रणब दा इस पद के लिए हर तरह से योग्य भी थे। इसी तरह इस पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता सुशील कुमार शिंदे को भी राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी बनाया। भाजपा में भी अटल जी की सरकार के समय राष्ट्रपति- उपराष्ट्रपति चुनावों में बेहतरीन निर्णय लिए गए। उन्होंने पार्टीवाद से ऊपर उठकर डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम के रूप में एक ऐसा राष्ट्रपति दिया, जिसे जन- जन ने पसंद किया। पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री भैरोंसिंह शेखावत को उपराष्ट्रपति बनाया जाना भी एक सराहनीय कदम था। वेंकैया नायडू ने दक्षिण में भाजपा का जनाधार बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन फिर भी यदि किसी प्रकार की संवैधानिक अड़चनें और बुजुर्ग नेताओं के स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं न हों तो राष्ट्रपति पद के लिए आडवाणी जी और डॉ जोशी के नाम पर विचार किया जा सकता है।

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