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Thursday, September 19

तिरछा तीर: वो कब समझेंगे, जिनका समझना जरूरी है..

संजय आचार्य वरुण

सुबह – सुबह सात बजे किसी ने जोर से हमारे घर का दरवाजा खटखटाया। हमने नींद से जागकर आंखें मसलते हुए दरवाजा खोला तो देखा कि हमारे परम मित्र चकरम जी गेट पर खड़े हैं। हमने कहा कि ‘अरे चकरम जी, आप इतनी सुबह हमारे घर…’

हम अपनी बात पूरी करते इससे पहले ही हमें लगभग धकियाते हुए चकरम जी बंगाल की खाड़ी से उठने वाले किसी तूफान की तरह हमारे घर में घुस गए। आंगन में लगी टेबल- कुर्सी पर आराम से जमकर बैठते हुए बोले- ‘अभी हमसे कुछ मत पूछिए मित्र, अभी हमारा सिर भन्नाया हुआ है। रात भर बिजली ने हमारे साथ कबड्डी खेली है..हम पूरी रात जागे हुए हैं। अभी सुबह बिजली आई तब तुम्हारी भाभी सोई है। हमें नींद नहीं आई तो हम चाय पीने के लिए तुम्हारे यहां चले आए।’

चकरम जी ने एक ही सांस में सब कुछ कह डाला। हम अपनी पत्नी को चाय का बोलने अंदर आए तो देखा कि वह मंदिर में बैठी हुई भगवान को इस तरह से मनाने में तल्लीन थी जैसे किसी पार्टी का नेता रूठे हुए विधायकों को मनाता है। उसे चाय के लिए मंदिर से उठाने की हमारी हिम्मत नहीं हो रही थी। उधर हम चकरम जी को चाय का मना करते तो ये डर था कि वे विरोध में हमारे खिलाफ जाने क्या कार्रवाई कर दें। कल रात को जब बिजली ने हमारे मौहल्ले से अपने सभी रिश्ते खत्म कर दिए थे तब इन्हीं चकरम जी ने विधायक जी के खिलाफ जबरदस्त नारेबाजी की और अगली बार उन्हें हराने तक का संकल्प कर लिया था। रात्रि के उस घटनाक्रम को याद करते हुए हमने किचन में जाकर स्वयं ही चकरम जी के लिए चाय बनाने का निश्चय किया।

जिस तरह हमारे क्षेत्र के विधायक जी ने नए होने के बावजूद सिंह गर्जना के साथ विधानसभा में बिजली कम्पनी और पूर्व मंत्री के खिलाफ जमकर भाषण दिया था, ठीक उसी तरह हमने भी पहली बार ही सही लेकिन बेहद स्वादिष्ट चाय बना डाली।

चाय का कप हमने चकरम जी के आगे रखा लेकिन उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया न पाकर हम चिंतित हो उठे। उनका सिर कुर्सी की पीठ पर लगभग लुढ़का हुआ जानकर हमने उनके बारे में वह सोच लिया जो एक मित्र होने के नाते हमें नहीं सोचना चाहिए था। हमने चकरम जी को आवाज दी और हमारी सभी आशंकाओं को निर्मूल साबित करते हुए चकरम जी कुर्सी पर तनकर बैठ गए। दरअसल, रात भर के जगे होने के कारण उन्हें झपकी लग गई थी। बिजली की प्रतीक्षा में सोई हुई पत्नी को खजूर की पंखी से हवा डालते हुए रात तो हमने भी किसी विरहिणी की तरह जागकर ही बिताई थी किन्तु हममें अब भी उतना ही संयम बाकी था जितना मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने के बावजूद वसुंधरा जी में बाकी है।

चकरम जी ने चाय का कप उठाते हुए जैसे एक हुंकार लगाई कि – ‘मित्र, तुम पत्रकार होने के बाद भी बिजली के बार- बार जाने से जनता को होने वाली परेशानी से भले ही आंखें मूंदे बैठे रहो लेकिन हम अब किसी भी कीमत पर चुप नहीं रहेंगे। या तो सरकार को बिजली कम्पनी के खिलाफ उचित कार्रवाई करनी होगी या फिर शहर की बिजली व्यवस्था को सुचारू करना होगा।’

हमने चकरम जी से कहा कि ‘यदि इन दोनों में से एक भी काम नहीं हुआ तो…?’
तो इस शहर को चकरम जी के रूप में जनता के हितों के लिए लड़ने वाला एक नया ऊर्जावान नेता मिलेगा…’
हमने आंखें फाड़कर चकरम जी को देखा तो वे बोले ‘कल रात को तुमने देखा नहीं कि हम बिजली की आंख मिचौनी के मुद्दे पर सरकार के खिलाफ कितना ओजस्वी भाषण दे रहे थे। हमें वो नारेबाजी करते- करते ही यह एहसास हुआ कि हमारे भीतर कितना प्रतिभाशाली जन नेता छुपा हुआ है… अरे भइये, इसी चक्कर में तो चकरम जी को बिजली आने के बाद भी नींद नहीं आई।

हम मन ही मन सोचने लगे कि यह बात कहने में बेचारे चकरम जी का भी क्या दोष ? जब हमारे यहां की राजनीति ही जनता की पीड़ा और परेशानी को भूलकर एक- दूसरे पर आरोप- प्रत्यारोप करने लगती है। उनके एक- दूसरे पर दोषारोपण में जनता की पीड़ा कहीं गुम सी हो जाती है। जनता वैसे ही परेशान होती रहती है और नए चकरमों के आने के लिए रास्ता बनता जाता है।

जनता के मुद्दों पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने की परम्परा हमारे यहां बहुत पुरानी है। हमने चकरम जी से कहा कि क्या आप नेता बनना चाहते हैं ?

‘तो इसमें बुराई ही क्या है ?’ उन्होंने तपाक से हमारे सवाल का जवाब दे दिया।
हमने उनको समझाया कि ‘हमारे शहर में वैसे भी इन दिनों नए- नए नेताओं की बहार आई हुई है। लोग सोशल मीडिया पर अपने हाथ जोड़े हुए फोटो के साथ हर पर्व- त्यौहार की शुभकामनाएं देते हुए मन ही मन खुद को लोकप्रिय नेता मान लेते हैं। नेता का अर्थ है नेतृत्व करने वाला.. अरे भइया, जब आपका नेतृत्व आपके घर वाले भी स्वीकार नहीं करते तो ये जनता कैसे स्वीकार करेगी?’

हमने चकरम जी को आईना दिखाते हुए कहा कि शहर में दो-चार जगह फ्लैक्स बैनर लगा देने और फेसबुक पर पोस्टें डाल देने भर से कोई नेता नहीं बन जाता.. नेता बनने के लिए लोगों की तकलीफों को अपनी तकलीफ मानकर निस्वार्थ भाव से बरसों तक काम करना पड़ता है।’ ‘तो अब हम क्या करें मित्र?’ चकरम जी ने हमसे पूछा।

हमने कहा कि ‘हमारी मानें तो आप नेता नहीं अच्छे इंसान बनकर मानवता की भलाई के काम निस्वार्थ भाव से कीजिए। लोगों का दुख- दर्द दूर करके आपको जो सुकून मिलेगा, वह नेतागीरी में नहीं मिलेगा। शहर हमारा है, हम शहर के हैं, इसके विकास में ही हमारा विकास है चकरम जी ! कुछ चीजें राजनीति से ऊपर होती है, यही बात तो हमारे नेता नहीं समझ पा रहे हैं।’

‘लेकिन हम समझ गए मित्र, हमें नेता नहीं बनना। बस अपने शहर के लिए कुछ अच्छा करना है, क्या तुम हमारे साथ हो ?’ चकरम जी ने पूछा। हमने कहा ‘आप आधी रात को आवाज देकर देख लीजिएगा।’
‘तो फिर ठीक है..अब हमें काम करना है..सिर्फ काम..’हमारी बातें चकरम जी को तो समझ में आ गई लेकिन उनको समझ कब आएगी..जिनको ये बातें समझना जरूरी है।

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