अभिनव न्यूज, नेटवर्क। मानसून आने से पूर्व मूंगफली की खेती करने वाले किसान अब इसकी बुवाई की तैयारियों में जुट गए हैं। पिछले कुछ सालों से मूंगफली की खेती की ओर अग्रसित हुए गावं रामसीसर भेड़वालिया, चैनाणिया, ढाणी कालेरा, बन्धनाऊ, भादासर, रणसीसर, मालसर, मालकसर तथा बादडिय़ा आदि गांवों के किसान कृषि विज्ञान केन्द्र से मिल रहे सुझाव अनुसार मूंगफली की बुवाई की तैयारियां कर रहे हैं।
बलुई दोमट मृदा होती है उत्तम
कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक मुकेश शर्मा की माने तो मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। फिर भी इसकी अच्छी तैयारी के लिए जल निकास वाली कैल्शियम एवं जैव पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मृदा उत्तम होती है। मृदा का पीएच मान 7.0 से 8.0 उपयुक्त रहता है। मई के महीने में खेत की एक जुताई मिट्टी पलटनें वाले हल से करके 2-3 बार हैरो चलाए तो इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल करने नमी बनी रहती हैं।
जिप्सम का उपयोग लाभकारी
कृषि वैज्ञानिको के अनुसार खेत की आखिरी तैयारी के समय 2.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से जिप्सम का उपयोग करना लाभकारी होता है। भूमि उपचार – मूंगफली फसल में मुयत: सफेद लट एंव दीमक का प्रकोप होता है। इसके लिए खड़ी फसल में क्यूनालफोस 25 ईसी या क्लोरोपायरीफोस 20 ईसी एक लीटर प्रति बिघा बिजाई के साथ देनी चाहिए।
दीमक का प्रकोप कम करने के लिये खेत की पूरी सफाई जैसे पूर्व फसलों के डण्ठल आदि को खेत से हटाना चाहिए और कच्ची गोबर की खाद खेत में नहीं डालना चाहिए। जिन क्षेत्रों में उकठा रोग की समस्या हो वहाँ 100 कि.ग्रा. सड़े गोबर में 810 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदनाशी को मिलाकर अंतिम जुताई के समय प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिला देना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
कृषि वैज्ञानिक हरिश रछोया ने बताया कि मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही खाद एवं उर्वरकों की मात्रा सुनिश्चित की जानी चाहिए। मूंगफली की अच्छी फसल के लिये 5 टन अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए। उर्वरक के रूप में 20:32:20 कि.ग्रा./है. नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटाश का प्रयोग आधार खाद के रूप में करना चाहिए। मूंगफली में गंधक का विशेष महत्व है अत: गंधक पूर्ति का सस्ता स्त्रोत जिप्सम है।
जिप्सम की 250 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग बुवाई से पूर्व आखरी तैयारी के समय प्रयोग करना चाहिए। मूंगफली की गुच्छेदार प्रजातियों का 80 किग्रा एवं फैलने व अर्द्ध फैलने वाली प्रजातियों का 60 किग्रा बीज (दाने) प्रति हैक्टर प्रयोग उत्तम पाया गया है।
बीजोपचार जरूरी
कृषि वैज्ञानिक के अनुसार बीजोपचार कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत थाइरम 37.5 प्रतिशत की 2.5 ग्राम बीज की दर से या 1 ग्रा. कार्बेन्डाजिम ट्राइकाडर्मा विरिडी 4 ग्रा.किग्रा बीज को उपचार करना चाहिए। बुवाई पहले राइजोबियम एवं फास्फोरस घोलक जीवाणु पीएसबी से 5-10 ग्रा. बीज के मान से उपचार करना चाहिए। जैव उर्वरकों से उपचार करने से मूंगफली में 15-20 प्रतिशत की उपज बढोत्तरी की जा सकती है।
कैस करें कीटों की रोकथाम
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मूंगफली में सफेद लट, इल्ली, मूंगफली का माहू व दीमक प्रमुख है। सफेद लट की समस्या वाले क्षेत्रों में बुवाई के पूर्व फोरेट 10 जी या कार्बोयुरान 3 जी 20-25 किग्रा हैक्टर की दर से खेत में डाल देनी चाहिए। दीमक के प्रकोप को रोकने के लिये क्लोरोपायरीफॉस दवा की 3 लीटर मात्रा को प्रति हैक्टर दर से प्रयोग, रस चूसक कीटों माहू, थ्रिप्स व सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली.प्रति लीटर या डायमिथोएट 30 ईसी का 2 मिली ली. के मान से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रयोग करें।
पत्ती सुरंगक कीट के नियंत्रण के लिए क्यूनॉलफॉस 25 ईसी का 1 लीटर हैक्टर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। मूंगफली में प्रमुख रूप से टिक्का, कॉलर और तना गलन और रोजेट रोग का प्रकोप होता है। टिक्का के लक्षण दिखते ही इसकी रोकथाम के लिए डायथेन एम-45 का 2 ग्रा/लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव 10-12 दिन के अंतर पर पुन: करें। रोजेट वायरस जनित रोग हैं, इसके फैलाव को रोकने के लिए फसल पर इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली/लीटर पानी के मान से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
कैसे करें बुवाई
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मूंगफली की बुवाई समय पर करनी चाहिए। जिसमें झुमका किस्म के लिए कतार से कतार की दूरी 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखना चाहिए। विस्तार और अर्धविस्तारी किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सेमी एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंमी रखना चाहिए। बीज की गहराई 3 से 5 सेमी रखनी चाहिए।
गुणकारी होती है मूंगफली
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मूंगफली गुणकारी होती है। मूंगफली में में तेल 45 से 51 प्रतिशत, प्रोटीन 28 से 30 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेठ 21-25 प्रतिशत, विटामिन बी समूह, विटामिन-सी, कैल्शियम, मैग्नेशियम, जिंक फॉस्फोरस, पोटाश जैसे मानव शरीर को स्वस्थ रखनें वाले खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।