अभिनव न्यूज, बीकानेर। मानवीय वेदना-संवेदना के साथ जीवन के सच को अपनी विशिष्ट काव्य शिल्प शैली से पंजाबी साहित्य को नव आयाम देने वाले एवं पंजाबी भाषा एवं संस्कृति को राष्ट्रीय पटल पर गौरवान्वित करने वाले पद्मश्री राष्ट्रीय प्रतिष्ठित उपाधि से सम्मानित कीर्तिशेष डॉ. सुरजीत पातर का गत दिनों 79 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उनके निधन से साहित्य जगत में गहरा शोक है। राजस्थानी भाषा के साहित्यकार एवं केन्द्रीय साहित्य अकादेमी नई दिल्ली के राष्ट्रीय मुख्य पुरस्कार एवं अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित कमल रंगा ने कहा कि डॉ. सुरजीत पातर का न रहना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है। वे पंजाबी कविता के काव्य गौरव थे, रंगा ने कहा कि स्व डॉ. सुरजीत पातर उनकी काव्य कृति ‘तिरस री तासीर’ के लोकार्पण करने पधारे थे एवं दूसरे दिन उनका बीकानेर में भव्य एकल काव्य पाठ का आयोजन भी हुआ। उन्होंने इस अवसर पर राजस्थानी एवं पंजाबी को दो बहनों की संज्ञा देते हुए राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता का पुरजोर शब्दों में समर्थन किया। स्व सुरजीत पातर के निधन पर ई-शोक स्मरण करते हुए श्री डूंगरगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार एवं अकादेमी अनुवाद पुरस्कार से पुरस्कृत डॉ मदन सैनी ने कहा कि डॉ. सुरजीत पातर बहुत ही प्रतिष्ठित एवं कुशल अनुवादक भी थे उन्होंने अपने जीवन में 8 विश्व प्रसिद्ध काव्य नाटकों का पंजाबी में अनुवाद किया।
पाली सोजत के वरिष्ठ शायर एवं बाल साहित्यकार अब्दुल समद राही ने उनकी नेक इंसानी को बया करते हुए उनकी कविताओं पर बात कही। वहीं वरिष्ठ अनुवादक-साहित्यकार विरेन्द्र लखावत ने उन्हें मातृभाषा पंजाबी का सच्चा सपूत बताते हुए नमन किया। शायर जाकिर अदीब ने उन्हें मानवीय चेतना का पैरोकार बताया तो संजय सांखला ने उनकी मां श्रृंखला की कविता का जिक्र करते हुए उन्हें स्मरण किया। कवि गिरिराज पारीक ने उन्होंने पंजाबी भाषा का महान् विद्वान बताते हुए नमन किया। अपनी शोक सभा व्यक्त करते हुए राजेश रंगा, गंगा बिशन बिश्नोई कवि अब्दुल शकुर बीकाणवी, युवा कवि पुनीत कुमार रंगा, संस्कृतिकर्मी हरिनारायण आचार्य आदि ने उन्हें नमन स्मरण करते हुए कहा कि स्व. डॉ. सुरजीत पातर अपनी कविताओं के माध्यम से आम जनता में अपार लोकप्रियता हासिल किए हुए रहे एवं उन्हें आलोचकों भी काफी प्रशंसा मिली।