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Friday, September 20

डॉ.छगन मोहता स्मृति व्याख्यानमाला

यूरोपीय भौतिक विचार से प्रभावित है हमारी शिक्षा

अभिनव न्यूज, बीकानेर भाषा, शिक्षा और ज्ञान के उपनिवेशीकरण ने हमारे मौलिक चिंतन की क्षमता का लोप कर दिया है। इसलिए बंदी बौद्धिकता से मुक्ति ही विउपनिवेशीकरण है।’’ ये उद्बोधन सुख्यात विचारक अभय कुमार दुबे ने डॉ.छगन मोहता स्मृति व्याख्यानमाला की 20वीं कड़ी में अपना व्याख्यान देते हुए व्यक्त किए। अवसर था- शहर के प्रबुद्धजन से आकंठ स्थानीय प्रौढ़ शिक्षा भवन में बीकानेर प्रौढ़ शिक्षण समिति, बीकानेर द्वारा आज 30 जुलाई, 2023 को आयोजित डॉ.छगनमोहता स्मृति व्याख्यानमाला की 20 वीं कड़ी में देश के जानेमाने विचारक और पत्रकार अभय कुमार दुबे के मुख्यवक्ता के रूप में ‘भाषा, शिक्षा और ज्ञान का विउपनिवेदशीकरण’ विषय पर व्याख्यान के आयोजन का।

इस अवसर पर संस्था परिवार ने मुख्य अतिथि अभय कुमार दुबे को साफा एवं बीकानेर गोल्डआर्ट से निर्मित स्मृतिचिह्न प्रदान कर स्वागत किया। अपने व्याख्यान का प्रारंभ करते श्रीदुबे ने अंग्रेजों की औपनिवेशिकरण की सोच और यूरोपीय भौतिक विचार से प्रभावित हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था में मौलिक भारतीय चिंतन की क्षमता समाप्त कर देने के बारे में गंभीरता चिंता अभिव्यक्त की।

उन्होंने अपने तीक्ष्ण तर्कों के माध्यम से कहा कि हमारे विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों का हम चाहें जो नाम रखलें क्या ये अंग्रेजीयत से मुक्त हो पाएंगे – क्या ये तक्षशिला और नालंदा सम समृद्धज्ञान परंपराओं को पुनः सृजित कर पाएंगे? क्या ये शास्त्र रच सकने वाले विद्वान दे पाएंगे? देश में संस्कृत, तेलगु, कन्नड़ जैसी भाषाअें की साहित्य समृद्धि से क्या हम कभी परिचित भी हो पाएंगे? इस प्रकार के तमाम प्रश्नों से भारतीय चिंतन की हो रही क्षति के बारेमें जब हमें इस यथार्थ की प्रतीति हो जाएगी तब कहीं जाकर हमें भारतीय भाषाओं में शिक्षा और ज्ञान प्राप्त करने और उस पर गर्व करने का महत्व मालूम होगा। हमें अपनी ज्ञान परम्परा की उपयोगिता को समझना और समझाना होगा।

हालंाकि इतने लंबे समय से जो भटकाव हुआ है उसे सही मार्ग पर आने के लिए भी समय लगेगा, लेकिन इस दिशा में मूर्त रूप में अब कार्य प्रारंभ होने की नितांत आवश्यकता है। क्योंकि अब तक यह सफर केवल चिंतन रूप में ही है – क्रिया रूप में व्यवहार में आने की शुरूआत होनी परमावश्यक है।
श्रीदुबे ने कहा कि इसके लिए प्रथम चरण में हमें ज्ञान के लोकतांत्रिकीकरण के लिए अपनी शिक्षा व्यवस्था को भारतीय भाषाओं में ढालकर करना होगा।

हमारी साहित्य निधि को भारतीय भाषाओं में अनुवादित कर प्रसारित करना होगा। इसके लिए हमें लंबे समय तक बौद्धिक मोर्चाबंदी करनी होगी। पश्चिम के प्रभाव को ही आधुनिकता समझना बंद करना होगा। भाषा, शिक्षा और ज्ञान के दीर्घकालिक औपनिवेशिकरण खंडित कर भारतीय चिंतन और ज्ञान परंपरा को स्थापित करना होगा।तत्पश्यात् जिज्ञासा सत्र में आगंतुक प्रबुद्धजन ने विभिन्न प्रश्नों एवं जिज्ञासाओं की अभिव्यक्ति करके और मुख्यवक्ता द्वारा दिए गए उनके प्रत्युत्तरों ने व्याख्यान को सार्थक बना दिया।

डॉ.ब्रजरतन जोशी ने कहा कि भारतीय चिंतन में व्याख्यायित है कि ज्ञान यदि व्यवहार में नहीं आता है तब तक वह भार के समान है और आत्मचिंतन को क्रिया में उतरना ही चिंतन की सार्थकता है।
आयोजन के प्रारंभ में मानद सचिव श्रीमती सुशीला ओझा ने आगंतुकों का स्वागत करते हुए कहा मुख्यवक्ता के परिचय से सदन को अवगत कराया।

उन्होंने कहा कि व्याख्यानमाला का आयोजन हममें नवीन ऊर्जा भरने वाला अवसर होता है। संस्था के अध्यक्ष डॉ.ओम कुवेरा ने डॉ.छगनमोहता के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि चिंतन और प्रज्ञा के क्षेत्र में उनका व्यक्तित्व बेजोड़ था। वे अपने गुणों से सुधि समाज के लिए तीर्थ समान पूज्य हो गए। अंत में संस्था के उपाध्यक्ष अविनाश भार्गव ने व्याख्यानमाला को सफल बनाने के लिए आगंतुकों के प्रति आभार स्वीकार किया।

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