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Thursday, September 19

दृष्टिकोण: वरना सिर्फ सरकार बदलेगी, हालात नहीं

संजय आचार्य ‘वरुण’

राजस्थान की राजनीति का ऊंट चुनाव के बाद किस करवट बैठेगा, इस सवाल पर फिलहाल कयास ही लगाए जा सकते हैं और किया भी यही जा रहा है। कांग्रेस समर्थक कह रहे हैं प्रदेश में अशोक गहलोत सरकार रिपीट होगी। भाजपा समर्थकों के दावे हैं कि विभिन्न सर्वे रिपोर्टों में वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री का चेहरा बताए बगैर भाजपा तकरीबन 140 सीट लाती नजर आ रही है। भाजपा के ये दावे कितने सही साबित होंगे, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि इस बार भाजपा प्रदेश का ये चुनाव मोदी के नाम पर ही लड़ेगी।

गौरतलब तथ्य यह है कि प्रदेश की दोनों प्रमुख पार्टियां अन्तर्कलह से ग्रस्त हैं। दोनों पार्टियों में प्रथम पंक्ति के बड़े नेता अब अपनी महत्वाकांक्षाओं को दबा नहीं पा रहे हैं। कांग्रेस के सचिन पायलट तो अब खुलकर सामने भी आ चुके हैं, उनका पार्टी छोड़ना और नई पार्टी बनाना लगभग तय है। क्योंकि जिस तरह से उन्होंने अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोला है, उससे साफ जाहिर होता है कि वे गांधी परिवार को कोई संदेश देना चाहते हैं।

ये ठीक बात है कि प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए पार्टी की जीत का श्रेय और मुख्यमंत्री पद का दायित्व उन्हें मिलना चाहिए था, अशोक गहलोत एक लम्बी राजनीतिक पारी खेलने के साथ ही दो बार मुख्यमंत्री रह चुके थे, लेकिन पार्टी ने पायलट को लगभग अनदेखा कर दिया। यह स्थिति किसी भी नेता में आक्रोश का बीज बोने के लिए पर्याप्त है। सचिन पायलट और कांग्रेस की सुलह भी अब संभव नहीं लगती, क्योंकि गांधी परिवार ने उन नेताओं के असंतोष को तवज्जो नहीं दी जो कांग्रेस को अपने भीतर जी रहे थे। सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट कांग्रेस के लिए ठीक उतने ही समर्पित रहे थे जितना कि स्व. राजीव गांधी रहे होंगे।

भाजपा के पास राजस्थान में वसुन्धरा राजे के अलावा फिलहाल कोई ऐसा चेहरा नज़र नहीं आ रहा जिसका कद अशोक गहलोत के बराबर हो। जो बड़े कद के नेता हैं, वे न तो सर्वमान्य हैं और न ही जनता में उनकी कोई खास छवि है। अति आत्मविश्वास में भाजपा द्वारा की गई गलतियों को कांग्रेस जरूर भुनाना चाहेगी।

एक बात राजस्थान के आम मतदाताओं के चिंतन के लिए है कि राजस्थान में हर पांच साल बाद होने वाले चुनाव में सत्ता क्यों बदल जाती है ? क्या दोनों पार्टियों का शासन एक जैसा ही है, क्या जनता किसी भी पार्टी के कार्यकाल से संतुष्ट नहीं होती या फिर राजस्थान की जनता को हर पांच साल बाद नया मुख्यमंत्री देखने की आदत है ?
दरअसल, सच यह है कि राजस्थान में सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की, सिर्फ चेहरे और अधिकारी ही बदलते हैं, व्यवस्थाएं नहीं बदलती। राजस्थान पिछले पच्चीस वर्षों से एक ही ढर्रे पर चल रहा है, जनता एक समयानुकूल बदलाव की तलाश में हर पांच साल बाद सरकार बदल देती है लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता सिवाय इसके कि सरकार हर बार जनता को अकर्मण्य बनाते हुए कुछ चीजें और मुफ्त मिलने की श्रेणी में डाल देती है।

भारतीय राजनीति में अपनी जगह बनाने की जद्दोजहद करती आम आदमी पार्टी भी मुफ्तखोरी बढ़ाने के सिद्धांत पर चलने लगी है। जनता को मुफ्त चीजें मत दीजिए, अवसर दीजिए कि वे अपने लिए और अपने देश के लिए कुछ कर पाएं। जनता को काम दीजिए आराम नहीं। कहीं से तो कोई क्रांति का सुराग दिखना चाहिए, कहीं तो मंज़र बदलने चाहिए वरना हर चुनाव में सिर्फ सरकार बदलेगी, हालात नहीं।

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