ग़ज़ल: क़ासिम बीकानेरी
मेरे नगर की सबसे ऊंची शान देख लो
सबसे जुदा है दुनिया में पहचान देख लो
तुम राम देख लो चाहे रहमान देख लो
इस शहर में तो रहते हैं इंसान देख लो
मिल जुलके रहते हैं यहां हर इक धरम के लोग
हिंदु के दिल में रहते मुसलमान देख लो
मिलती है नौगज़ा वली की सबको तो दुआ़
और लक्ष्मीनाथ जी का भी वरदान देख लो
इक घर में पाठ गीता का दूजे में हो रही
क्या शान से तिलावते-क़ुरआन देख लो
मेहमान का भी करते हैं हम लोग ख़ूब मान
ख़ुश होके जाते हैं सभी मेहमान देख लो
बहती है गंगा प्यार की इस शहर में सदा
झगड़े का कुछ यहां नहीं इम्कान देख लो
होली भी है निराली, निराली यहां पे ईद
मीठी सेवइयां और भी पकवान देख लो
इक दूसरे के आते हैं हम लोग सभी काम
इस शहर में तो रहते हैं इंसान देख लो
इंसां तो इंसांं जानवरों का रखे ख़याल
गौशाला में भी दे रहे हैं दान देख लो
दुनिया हमारे शहर की ता’रीफ़ कर रही
‘क़ासिम’ भी दिल से कर रहा गुणगान देख लो