वली मुहम्मद ग़ौरी रज़वी “वली
सुबह हसीं है और हसीं इसकी शाम है
क्या शहर बीकानेर भी प्यारा सा नाम है
ये शहर मेरा शहर है उल्फ़त का इक शजर
है अम्न के परिन्दे हर इक इसकी शाख़ पर
इसकी फ़िज़ा को बख़्शा है रब ने बड़ा असर
पल में उतर ही जाता है नफ़रत का हर ज़हर
हर सू छलकता इस पे मुहब्बत का जाम है
क्या शहर बीकानेर भी प्यारा सा नाम है
इस शहर की तो देखिये क़िस्मत अजीब है
अपना हो या के ग़ैर हो इसको हबीब है
रोशन ख़ुदा के फ़ज़्ल से इसका नसीब है
दहशत है दूर इससे मुहब्बत क़रीब है
हर ज़र्रा-ज़र्रा इसका वफ़ा का पयाम है
क्या शहर बीकानेर भी प्यारा सा नाम है
मेरे शहर पे होती है मौला की इनायत
हर रोज़ इस पे होती है पीरों की करामत
हर ज़ुल्म हर दंगे से है ये शहर सलामत
बाशिंदे इसके करते हैं हर एक से उल्फ़त
मीठी ज़बां है सबकी और मीठा कलाम है
क्या शहर बीकानेर भी प्यारा सा नाम है
मेरे शहर में बंटता है उल्फ़त का ख़ज़ाना
गाती है हवा इसकी मुहब्बत का तराना
इसकी चमक से होता है रोशन ये ज़माना
पाते हैं ग़ैर आकर इस पर तो ठिकाना
दिल में “वली” के इसका बड़ा अहतराम है
इस शहर के बाशिंदों को मेरा सलाम है
सुबह हसीं इसकी हसीं इसकी शाम है
क्या शहर बीकानेर भी प्यारा सा नाम है