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Friday, September 20

इस शहर में जो सुकून है, वो कहीं नहीं।

अभिनव न्यूज
बीकानेर।
लोग कहते हैं बीकानेर वालों से अपना घर नहीं छूटता। मैं कहता हूं घर नहीं…. ये शहर नहीं छूटता। इस शहर में जो सुकून है, वो कहीं नहीं। कहीं ओर मन ही नहीं लगता। ये शहर मेरे बुजुर्गों जैसा है जो मुझे हमेशा संभालकर रखता है, ये शहर मेरे बच्चों जैसा है, जिन्हें में अपार प्यार करता हूं। ये शहर मेरी पत्नी जैसा है जो हर वक्त मेरी चिंता करता है, ये शहर मेरे जैसा है, जो हर वक्त खुद को संवारता रहता है। ये बीकानेर मेरे दोस्तों जैसा हैं, हंसता भी है और मेरे रोने पर दिलासा भी देता है।

सच कहूं तो बीकानेर शहर है ही नहीं, ये तो परिवार है। यहां हर्षों के चौक के पाटे पर बैठ जाओ, तो घर जैसा लगता है। आचार्यों के चौक में पाटे पर बैठे तो लगता है किसी पड़ौसी के यहां हैं। ननिहाल में है। कीकाणी व्यासों का चौक तो ससुराल ही है और लालाणी व्यासों का चौक मेरी बुआ का घर है। कहीं भी चले जाओ, कोई न कोई रिश्तेदार मिलेगा।

मेरे इस शहर में एक कमी है, बहुत बड़ी कमी है। जो दूसरे शहरों में है लेकिन यहां उपलब्ध नहीं है। यहां अंकल-आंटी नहीं है। यहां काका-काकी है, मामा-मामी है, मासा-मासी है, दादा-दादी है। ये अंकल-आंटी आजकल की कुछ कॉलोनियों में ही है।

यहां पीड़ा होती है तो घर वालों का इंतजार नहीं किया जाता, पूरा मोहल्ला ही पहुंच जाता है। पीबीएम अस्पताल वाले परेशान है कि बीकानेर में कोई आदमी अस्पताल में भर्ती होता है तो पूरा मोहल्ला पहुंच जाता है। अरे डॉक्टर साब, ये मोहल्ला नहीं है, चिंता करने वाले अपने हैं।
यहां किसी की मृत्यु होने पर सिर्फ घर वाले ही बाल नहीं देते।

पड़ौसी भी दे देते हैं, क्योंकि उसकी मां तो मेरी मां ही हुई ना। इसी सोच में आंसु भी बहा देता है और बाल भी दे देता है।
किसी का जन्म होते ही पूरा मोहल्ला खुश हो जाता है। कोई खुद को दादा तो कोई स्वयं को नाना समझने लगता है। काका-काकी और बाबा-बडिया की तो कमी ही नहीं है।

ये जो बीकानेर है ना, ऐसा शहर कोई बसा ही नहीं। लाहौर वालों का भी वहम गलत है कि जिसने लाहौर नहीं देखा, उन्होंने कुछ नहीं देखा। हम कहते हैं जिसने बीकानेर नहीं देखा, उसने कुछ नहीं देखा। हर बीकानेरी का दिल प्यार से सराबोर है।

Happy Birthday Dear Bikaner.

संकलन : रामनारायण आचार्य, गोलछा चौक, बीकानेर

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