अभिनव न्यूज
बीकानेर: स्थानीय श्री आदि गणेश मंदिर मे चल रही श्रीमद्भागवत कथा मे व्याख्यान करते हुए श्री मरुनायक व्यास पीठाधीश्वर पं. भाईश्री ने कहा कि वासना-विकारहीनता के बिना प्रकाश-प्राप्ति संभव ही नहीं है।”- बुद्धि वासना और इससे मिलने वाले दुःखों की चर्चा जनमानस में परिव्याप्त है, पर इनकी उत्पत्ति, प्रकृति और अंतर्संबंध पर अंतर्दृष्टि का सर्वथा अभाव और दैन्य परिलक्षित होता है।
सबसे पहले तो यही प्रश्न है कि वासना है क्या? वासना है इच्छाओं की अधिकता। वासना है सुख-लोलुपता। वासना है- प्राप्ति की चाह। वासना है- ‘सुखभोग की कामना’। वासना है- ‘इंद्रियों की गुलामी’, ‘इंद्रियों की सत्ता’। वासना है- ‘और-और-और की चाह’। वासना है मन की दुर्बलता, यह है किसी व्यक्ति या वस्तु के पीछे पागल हो जाना, उससे चिपक जाना।
ध्यान रखना आवश्यक है कि वासना का यह अर्थ नहीं कि कोई कांक्षा (इच्छा) ही न हो। निर्भ्रान्त सत्य यह है कि जब तक शरीर है, मानुषी-तन है, इच्छाएँ रहेंगी। पर कितनीं? नियंत्रित या अनियंत्रित? सीमित या असीमित? परिमित या अपरिमित-अदमनीय? देखा जाता है कि वासना असीमित, अनियंत्रित और अदमनीय हो जाती है।
वासना से चित्त उखड़ा-उखड़ा रहता है, अशांत रहता है। अशांत होते ही वासना को विस्तार मिलता है जिसके चक्रव्यूह में फँसकर व्यक्ति अनेक पाप करता है।
आज कथा मे राजा परीक्षित के प्रश्न, ब्रह्मा जी उत्पति, विराट शरीर की उत्पत्ति, सृष्टि वर्णन, भागवत के दस लक्षण, कर्दम जी द्वारा माता देवहूति को अष्टांग योग ज्ञान,सांख्य ज्ञान बताकर वासना मुक्त होकर परमात्मा को प्राप्त करने का साधन निर्दिष्ट बताया है। माता सती आख्यान वर्णन भी किया गया।
कथा विश्राम पर राजकुमार प्रजापत, राकेश व्यास, द्वारकाप्रसाद पँवार, नारायण सिंह पँवार आदि ने उपस्थित भक्तजनों को प्रसाद, तुलसी, पंचामृत आदि का वितरण किया गया।