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Saturday, November 23

राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर में साहित्यकार भगवतीलाल व्यास की स्मृति सभा, वक्ता बोले- सुख की नहीं दुःख की कविता का रचयिता बनना बड़ी बात

अभिनव न्यूज बीकानेर।
उदयपुर। सुख की कविता की बनिस्पत दुःख की कविता का वितान विस्तृत और संवेदनाओं का स्तर गहन होता है। दुःख को सहना और उस से निकली आह के गान को सार्वजनिक करना दुनिया के मुश्किल कामों में से एक काम होता है। यही काम हमारे समय के कवि भगवतीलाल व्यास ने किया।
उक्त विचार राजस्थान साहित्य अकादमी सभागार में साहित्यकार भगवतीलाल व्यास की स्मृति सभा में अकादमी की सरस्वती सभा के सदस्य किशन दाधीच ने व्यक्त किए। दाधीच ने कहा कि कवि व्यास ने बचपन में मां और बाप को खो दिया और अपनी बुआ के दूध के साथ पले-बढे और संघर्ष के रास्तों से गुजरते हुए साहित्यिक आकाश और जीवन की सफलताओं को नापा। उनके भोगे गए दुख उनकी रचनात्मक यात्रा में बड़े मददगार बने।

मीरां पुरस्कारा से समादृत कवि पद्मश्री डॉ. चंद्रप्रकाश देवल ने कहा कि जन्म और मृत्यु के बीच व्यक्ति क्या करता है, यही बस उसकी स्मृति के कारण होते हैं और कवि व्यास का रचना-संसार उनकी स्मृति को स्थाई बनाएगा। प्रख्यात आलोचक डॉ. जीवन सिंह ने कहा कि व्यास जी अजातशत्रु थे और उनकी सरलता ही उनके काव्य का मूल तत्त्व है। कवि डॉ. ज्योतिपुंज ने उनके साथ की अनेक स्मृतियों को याद किया और उनके अवदान को रेखांकित किया।

श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए साहित्यकार डॉ. सदाशिव श्रोत्रिय ने कहा कि कवि भगवतीलाल महत्वपूर्ण साहित्य हम सबके बीच छोड़कर गए हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी या अन्य संस्थाओं को साहित्यकारों के अंतिम समय में संगी-साथी बनना चाहिए। आलोचक डॉ. मंजू चतुर्वेदी ने कहा कि वे न केवल अच्छे कवि थे अपितु वे अच्छे शिक्षक भी थे। साहित्यकार डॉ. मंगत बादल ने कहा कि आदमी शरीर छोड़ जाता है परंतु स्मृतियां सदैव साथ रहती हैं।

साहित्य अकादमी अध्यक्ष डॉ. दुलाराम सहारण ने कहा कि आधुनिक कविता में कवि व्यास के महत्त्वपूर्ण अवदान को भूलाया नहीं जा सकता। इस अवसर पर साहित्यकार डॉ. माधव हाड़ा, डॉ. कुंदन माली, डॉ. रेणु शाह, अशोक मंथन, मधु अग्रवाल, श्रेणीदान चारण, नारायणसिंह राव निराकार, विजयलक्ष्मी देथा अकादमी सचिव डॉ. बसंत सिंह सोलंकी, कोषाध्यक्ष कमल कुमार शर्मा, रामदयाल मेहरा, दिनेश अरोड़ा, रमेश कोठारी, प्रकाश नेभनानी, राजेश मेहता, जयप्रकाष भटनागर, गोपाल सिंह, नरेंद्र सिंह राजपूत आदि ने श्रद्धा सुमन अर्पित किए। संचालन साहित्यकार तरुण कुमार दाधीच ने किया।

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