संजय आचार्य वरुण
ये हम किस दौर में आ गए हैं ? हम भूल गए हैं कि हम कौन हैं और कैसे जी रहे हैं ? इस दौर में हर रोज न जाने कितनी ही श्रद्धाएं मार दी जाती हैं, इसका जिम्मेदार आखिर कौन है ? श्रद्धा वालकर हत्याकांड जैसी घटना कोई पहली बार नहीं हुई है, यह तो लम्बे समय से हो रही क्रूरतम वारदातों की एक और पुनरावृत्ति भर है। हां, हत्या को छुपाने का तरीका ऐसा है कि दैत्यों की रूह भी कांप जाए। सवाल वही है कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है ? इस पूरे घटनाक्रम में क्या केवल आफताब ही दोषी है ? इस घटना पर मनन कीजिए। आप पाएंगे कि यह सब कुछ एक दिन या साल- दो साल में नहीं होता। ऐसी घटनाएं हमारे सांस्कृतिक और सामाजिक पतन का दुष्परिणाम है। इसीलिए संत, महात्मा, विचारक और ज्ञानी लोग कहते हैं कि बच्चों को अच्छे संस्कार दीजिए, अपनी संस्कृति का महत्व समझिए, भोगवादी पाश्चात्यता को अपने घरों में दाखिल मत होने दीजिए। लेकिन हम 21 वीं सदी के लोग हैं। संस्कारों और प्राचीन भारतीय परम्पराओं का त्याग करके ही हम अपने आप को पढ़े लिखे और आधुनिक सिद्ध कर सकते हैं। ग्लोबलाइजेशन क्या केवल हमारे लिए ही हो रहा है ? हिन्दुस्तान के अलावा और भी तो मुल्क है दुनिया में। क्या वे दूसरे देशों की अपसंस्कृतियों का कचरा आधुनिकता और वैश्विक संस्कृति के नाम पर अपने सिर में डालते हैं?
जरा सोचिए कि आखिर लड़के और लड़कियों को अपने माता पिता पर से ये भरोसा क्यों उठता जा रहा है कि वे हमारे लिए सही जीवन साथी का चयन नहीं कर पाएंगे या ये हो रहा है कि माता पिता सही समय आने पर बच्चों के लाइफ पार्टनर चुनें, तब तक बच्चों का सब्र जवाब दे देता है और वे अति आत्मविश्वास में दैहिक आकर्षण को आधार बनाकर अपने लिए गलत व्यक्ति को चुन लेते हैं। ऐसी गलतियां अक्सर श्रद्धाएं ज्यादा करती हैं। बच्चों का माता- पिता पर से विश्वास क्यों उठता जा रहा है, इस विषय पर परिवारों और समाज को गहन चिंतन मंंथन करने की आवश्यकता है।
आए दिन हो रही ऐसी घटनाओं से सरकारों को भी सामाजिक जीवन के प्रति आत्म संज्ञान लेने की जरूरत है। सरकरों का काम केवल प्रशासनिक व्यवस्था तक ही सीमित नहीं होता। जिस तरह से मुस्लिम देशों की सरकारें अपने देश की संस्कृति और पारम्परिक मूल्यों के प्रति भी सजग और संवेदनशील होती है, ठीक उसी तरह से भारत की सरकार को भी भारतीय संस्कृति के संरक्षण के प्रति जागरूक रहना चाहिए। भारत सरकार को आजादी के नाम पर अपसंस्कृति को स्वीकार नहीं करना चाहिए। समलैंगिकता, लिंग परिवर्तन करवाना और लिव इन रिलेशनशिप जैसी अमर्यादित चीजों के प्रति सरकार को कोई ठोस कदम उठाना चाहिए, उल्टे भारत में अनेक राज्यों की सरकारें तो प्रकृति विरुद्ध लिंग परिवर्तन आदि कुंठाओं को प्रोत्साहित और कर रही हैं। कितना हास्यास्पद है कि एक आपरेशन के द्वारा कोई मर्द स्त्री और एक स्त्री मर्द बन जाती है । क्या ऐसा वास्तव में संभव है ?
संस्कृति की सुरक्षा करना क्या सरकार का दायित्व नहीं होता। किसी देश की संस्कृति से उस देश की अस्मिता जुड़ी हुई होती है। हम देखते रहे हैं कि लिव इन रिलेशनशिप नाम की कुत्सित पद्धति ने न जाने कितनी जिन्दगियां तबाह कर दी है, इसका कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता। फिर भी संंसार की सबसे प्राचीन सभ्यता वाले राष्ट्र में ये अमर्यादित जीवन शैली को कानून ने मान्यता कैसे दे रखी है ? आश्चर्य भरा सवाल ये है कि इस नाजायज तरीके को कोई सभ्य समाज जायज मानकर उसे अपनी स्वीकृति भला कैसे दे सकता है ? अगर सरकार श्रद्धा वालकर जैसे हत्याकांड रोकना चाहती है तो सबसे पहले लिव इन रिलेशनशिप पर पुनर्विचार करना चाहिए। सरकार इन घटनाओं से समझे कि लिव इन रिलेशनशिप अमर्यादित आचरण को बढ़ावा देने वाली ऐसी जीवन शैली है जो पवित्र रिश्तों का मजाक बना देती हैं । उचित तो यह है कि भारत में इस व्यवस्था को खत्म ही कर देना चाहिए। परस्पर प्रेम करने वाले स्त्री पुरुष के साथ रहने के लिए विवाह की व्यवस्था जब पहले से ही मौजूद है तो बिना विवाह के स्त्री पुरुष का साथ रहना कहां तक उचित है? इसके साथ ही जब दो अलग धर्मों के लोग परस्पर कोई सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करना चाहें तो इसके लिए भी कोई उचित कानूनी प्रक्रिया होनी चाहिए। कुल मिलाकर श्रद्धा वालकर हत्याकांड सरकार, समाज और मनुष्यता को चेत जाने के लिए आगाह कर रहा है।