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Thursday, September 19

जब रसगुल्ला की रार में उलझ गए उड़ीसा व बंगाल :

अभिनव डेस्क

बीकानेर । आज भले ही देश दुनिया में बीकानेर के रसगुल्ला व भुजिया अलग पहचान बना चुके हो लेकिन कुछ साल पहले दो राज्य उड़िसा व पश्चिम बंगाल रसगुल्ला को लेकर उलझ गए थे । दरअसल, दोनों राज्यों के बीच विवाद इस बात को लेकर था कि रसगुल्ले का आविष्कार कहां हुआ है । विवाद 2015 में ओडिशा के विज्ञान व तकनीकी मंत्री प्रदीप कुमार पाणिग्रही ने शुरू किया । उन्होंने दावा किया था कि रसगुल्ला का आविष्कार ओडिशा में हुआ है। उन्होंने इस दावे को सिद्ध करने के लिए भगवान जगन्नाथ के खीर मोहन प्रसाद को भी जोड़ा था। इस पर बंगाल के खाद्य प्रसंस्करण मंत्री अब्दुर्रज्जाक मोल्ला ने कहा था कि रसगुल्ला का आविष्कारक बंगाल है और हम ओडिशा को इसका क्रेडिट नहीं लेने देंगे।
इससे पांच साल पहले ओडिशा सरकार ने रसगुल्ला की भौगोलिक पहचान (जीआई) के लिए दावा किया कि रसगुल्ला का ताल्लुक उसी से है। बंगाल इसका विरोध शुरू कर दिया। जीआइ वह आधिकारिक तरीका है जो किसी वस्तु के उद्गम स्थल के बारे में बताता है। ओडिशा का सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय रसगुल्ला को राज्य की भौगोलिक पहचान से जोडने में लगा हुआ था। दस्तावेज इकट्ठा किए गए थे, जिससे साबित हो कि पहला रसगुल्ला भुवनेश्वर और कटक के बीच अस्तित्व में आया। वहीं, पश्चिम ने बंगाल इन सभी दावों का तोड़ ढूंढ निकाला और आखिर में रसगुल्ले पर बंगाल का कब्जा हो गया।
वर्ष 2016 में, पश्चिम बंगाल सरकार ने “बांग्लार रसगुल्ला” (बंगाली रसगुल्ला) या सामान्य रसगुल्ला नामक संस्करण के लिए जीआई टैग के लिए आवेदन किया , यह स्पष्ट करते हुए कि बंगाल और ओडिशा के संस्करण “रंग, बनावट, स्वाद दोनों में भिन्न थे। साल 2017 में, जब पश्चिम बंगाल को अपनी रसगुल्ला की भौगोलिक संकेत स्थिति मिली , तो भारत के रजिस्ट्री कार्यालय ने स्पष्ट किया कि पश्चिम बंगाल को बांग्लार रसगुल्ला के लिए जीआई का दर्जा दिया गया था और ओडिशा भी इसका दावा कर सकता है यदि वे रंग, बनावट के साथ अपने संस्करण की उत्पत्ति का स्थान बताते हैं। एक लंबी जद्दोजहद के बाद ओडिशा को 29 जुलाई 2019 को अपना स्वयं का रसगोला का जीआई दर्जा मिला। कुछ खाद्य इतिहासकार मानते हैं कि रसगुल्ला बांग्लादेश में उत्पन्न हुआ ।
पंचाना बंदोपाध्याय ने लिखा था कि रसगुल्ला का आविष्कार १९वीं शताब्दी में हरधन मोइरा द्वारा किया गया था । जो एक फुलिया- आधारित मिठाई बनाने वाला कारीगर था । बताते है एक मारवाड़ी व्यवसाई भगवानदास बागला ने भारी मात्रा में ऑर्डर देकर दुकान के इलाके से परे बंगाली रसगुल्ला को लोकप्रिय बनाया।
उधर ओडिशा के इतिहासकारों के अनुसार, रसगुल्ला की उत्पत्ति पुरी में खीर मोहन के रूप में हुई थी , जो बाद में पहला रसगुल्ला बन गया। इसे पारंपरिक रूप से पुरी के जगन्नाथ मंदिर में देवी लक्ष्मी को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है । स्थानीय किंवदंती के अनुसार, लक्ष्मी परेशान हो जाती हैं क्योंकि उनके पति भगवान जगन्नाथ उनकी सहमति के बिना ९ दिन के प्रवास ( रथ यात्रा ) पर चले जाते हैं । इसलिए, वह मंदिर के द्वारों में से एक जय विजय द्वार को बंद कर देती है और उसके काफिले को मंदिर के गर्भगृह में फिर से प्रवेश करने से रोकती है । जगन्नाथ उसे खुश करने के लिए उसे रसगुल्ले देते हैं। बचनिका के रूप में जाना जाने वाला यह अनुष्ठान, “नीलाद्री बीजे” (या “भगवान का आगमन”) पालन का हिस्सा है, जो रथ यात्रा के बाद मंदिर में देवताओं की वापसी का प्रतीक है ।

जगन्नाथ मंदिर के विद्वान जैसे लक्ष्मीधर पूजापंडा और जगबंधु पाधी जैसे शोधकर्ता कहते हैं कि यह परंपरा 12 वीं शताब्दी से अस्तित्व में है, जब वर्तमान मंदिर संरचना पहली बार बनाई गई थी।
पुजापांडा में कहा गया है कि नीलाद्री बीज परंपरा का उल्लेख नीलाद्री महोदय में मिलता है , जो १८वीं शताब्दी में शरत चंद्र महापात्र द्वारा लिखी गई है। महापात्र के अनुसार, कई मंदिर शास्त्र, जो ३०० साल से अधिक पुराने हैं, पुरी में रसगुल्ला चढ़ाने की रस्म का प्रमाण देते हैं।

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