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Friday, September 20

ये किस मक़ाम पे सूझी तुम्हें बिछड़ने की
यादों में मौजूद कार्टूनिस्ट पद्मश्री सुधीर तैलंग

-अमित गोस्वामी

उनकी आवाज़ की कशिश रात की गहराइयों की तरह भीतर तक उतर गई थी… बावजूद इस एहतियात के, कि आस पास गहरी नींद में सो रहे लोगों की नींद में ख़लल न पड़े। हमें जयपुर से बीकानेर आना था। रात की बस से आना तय हुआ। उन्होंने शर्त रख दी, कि तू रात को सोएगा नहीं। मैंने वजह पूछी तो बोले मैं रात भर गाऊँगा और तुझे मेरे गाने सुनने होंगे। हालाँकि मज़ाक़िया लहजे में कहा था उन्होंने, पर बेहद सधे हुए गले से उन्होने बहुत से गाने गाए…। टीवी चैनल्स पर कई कार्यक्रमों में, अंत्याक्षरी में ‘रंग और नूर की बारात किसे पेश करूँ’ और दूरदर्शन में ‘केसरिया बालम’ गाते हुए आप में से बहुत से लोग उन्हें सुन ही चुके हैं। उस रात भी सुधीर भाई अपने ही रंग में थे। मैं किसी पेशेवर गवैये की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं बात कर रहा हूँ देश के प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट पद्मश्री सुधीर तैलंग की। सुधीर तैलंग दिल्ली की राजनैतिक और साहित्यिक बैठकों और पार्टियों में अपने गानों से रंग जमाने वाले के रूप में भी जाने जाते थे। मशहूर गायक अनूप जलोटा के साथ स्टेज पर गाते हुए उनका एक फोटो काफ़ी वायरल हुआ है। उस्ताद अमजद अली ख़ान साहब को जब मैंने अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं सुधीर तैलंग का भाई हूँ, तो उस्ताद जी ने भी यही कहा, कि सुधीर भाई गाते भी बहुत अच्छा है।

सुधीर तैलंग को लोग जानते हैं एक प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट और पत्रकार के रूप में… पर वे एक मिसाल हैं कि कैसे इंसान केवल और केवल अपनी प्रतिभा के दम पर आसमान की बुलंदी तक पहुँच सकता है… सुधीर तैलंग को ख़ालिस ‘सैल्फ़ मेड’ प्रतिभा माना जा सकता है, जिसका कोई ‘गॉड फादर’ नहीं… पॉलिटिकल कार्टूनिंग के क्षेत्र में मंज़िल तो उनके सामने थी, पर रास्ता ख़ुद उन्होंने अपने आप तलाश किया… कला और साहित्य के दूसरे क्षेत्रों में अपना भाग्य आज़माने वालों की राह में और कुछ नहीं तो कम से कम पहले आगे जाने वालों के

नक़्श−ए−क़दम तो होते हैं .. पर सुधीर भाई ने तो मंज़िल ही ऐसी चुनी थी, जिसमें न कोई राह, न रहबर। शंकर पिल्लई, आर के लक्ष्मण या अबू अब्राहम जैसे चंद नाम ज़रूर थे, पर इस ऊँचाई तक पहुँचा कैसे जाए? सुधीर भाई के पास जवाब था अदम्य साहस, जीवट और अकूत प्रतिभा… इन सब की बदौलत ही इस बिलकुल ही नए रास्ते पर बढ़ते हुए बहुत ही थोड़े वक़्त में अपनी अलग पहचान बनाने में सफल हुए।

सुधीर भाई से लगातार बात होती थी, तक़रीबन हर रोज़… उनका फ़ोन आने का मतलब होता था दुनिया जहान की क़िस्सागोई और हँसी मज़ाक़… पर 25 जनवरी 2004 की शाम को उनका फोन आने के बाद मैं सातवें आसमान पर था। वैसे तो मैं उस वक़्त ट्रेन में यात्रा कर रहा था, पर उन्होंने जो ख़बर सुनाई उससे ऐसा लगा मैं बादलों में उड़ने लगा हूँ। उन्होंने बताया कि उन्हें ‘पद्मश्री’ सम्मान के लिए चुना गया है। ये न सिर्फ़ सुधीर तैलंग का सम्मान था, बल्कि मेरा सम्मान था, मेरे परिवार का सम्मान था पूरे बीकानेर का सम्मान था।

बीकानेर के ही जाए जन्में सुधीर तैलंग को एक बड़े भाई के रूप में बचपन से जाना, समझा है… और उन पर गर्व किया है। एक महान कार्टूनिस्ट होने के अलावा वे एक दरियादिल, सबकी मदद करने वाले इंसान थे। वे बेहद ज़हीन थे, और अपनी ज़हानत का मुज़ाहिरा अपने कार्टून्स में करते ही रहते थे। नवें दशक में जब बाबरी मस्जिद और राम मंदिर मुद्दा गर्म था, और भाजपा के डॉ मुरली मनोहर जोशी ने भौतिक शास्त्र के प्रोफ़ेसर के तौर पर इलाहाबाद युनिवर्सिटी में दोबारा जॉइन किया था। इस घटना पर सुधीर भाई का बनाया कार्टून जोशी जी को इतना पसंद आया, कि उन्होंने सुधीर भाई से ख़ास तौर पर उस कार्टून को फ्रेम करके देने की गुज़ारिश की। 2020 में डॉ जोशी से एक निजी मुलाक़ात के वक़्त जब मैंने उन्हें बताया कि मैं सुधीर तैलंग का भाई हूँ। सुधीर भाई के साथ अपने बेहद निजी तअल्लुक़ात को याद करते हुए जोशी जी ने कहा… अभी तो उसका वक़्त शुरू हुआ था, उसे इतना जल्दी नहीं जाना चाहिए था … मुझे भी जमाल एहसानी का एक शेर याद आ गया…
ये किस मक़ाम पे सूझी तुम्हें बिछड़ने की
कि अब तो जा के कहीं दिन सँवरने वाले थे
ट्रेन, बस, हवाई जहाज़, जलसों महफ़िलों में हर बार सबसे देरी से पहुँचने वाले सुधीर भाई ने इस दुनिया से जाने में वाक़ई बहुत जल्दी कर दी।
आख़िरी दिनों में, जब वे जानलेवा बीमारी से लड़ रहे थे तब भी उनकी ज़िन्दादिली पहले जैसी ही थी। उन्हें भी, और हम सब को भी मालूम था, कि अब वक़्त ज़्यादा नहीं बचा है, इसलिए 2015 का रक्षाबंधन हम सभी भाई बहनों ने उनके साथ दिल्ली में मनाया था। ये उनका आख़िरी रक्षा बंधन था।
उनके जाने से कुछ ही दिन पहले उन्होंने एक गाना गाया था, जिसे भाई राजेश तैलंग ने रिकॉर्ड भी किया था…

‘लौट के आना, है यहीं तुमको … जा रहे हो दूर, जाओ मेरी जाँ’
शरीर और आवाज़ साथ छोड़ रहे थे…पर बावजूद तमाम एहतियात के… वे गा रहे थे… उनकी आवाज़ की कशिश रात की गहराइयों की तरह भीतर तक उतर गई थी…।

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