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Friday, September 20

एक खत…प्रिय स्त्री, तुम ही हो रचयिता तुम ही हो निर्णायक

ममता चौधरी

प्रिय स्त्री!
स्वयं ही संबल बन सकती हो तुम, अपने हिस्से की लड़ाइयां खुद ही लड़नी होगी तुम्हें। देह को सिर्फ खूबसूरत नहीं मजबूत बनाना होगा तुम्हें तराशकर, कहीं भी महफूज़ नहीं हो तुम अगर जरा भी कमजोर पड़ती हो। पब्लिक प्लेस जानकर जहां तुम खुद को सुरक्षित समझती हो, वहां भी कोई आगे नहीं आएगा तुम्हारे लिए। क्यूंकि पब्लिक सिर्फ तमाशा देखना जानती है, सो अपने कंधो को बनाओ इतना दृढ़ कि वे तुम्हारा सब भार वहन कर सके। कोई तुम्हारे पुकारने पर भी नहीं आएगा स्वयं ही योद्धा हो तुम अपने युद्ध की, एक अघोषित युद्ध जो छेड़ा है तुम्हारी अस्मिता के विरुद्ध हर जगह भेड़ियों, गिद्धों, लकडबग्घों ने..कोई कुरीति हो या तुम्हारे कैरियर को लेकर निर्णय, सब कुछ खुद ही तय करना होगा, चाहे पर्दे में रहने को इनकार करने की बात हो या देर रात की शिफ्ट में काम से लौटकर सुरक्षित घर तक पहुंचना, इतने पर भी समाज से अपने लिए चरित्र प्रमाण पत्र बिन मांगे ही प्राप्त कर लेना, हर बात से खुद ही जूझना होगा तुम्हें, होना होगा इतना मजबूत कि समाज अपनी किसी कसौटी पर कस न सके तुम्हें, तुम नहीं बनोगी शिकार किसी कुंठित मानसिकता की। तुम्हें बनना होगा स्वयं अपना अर्जुन, कृष्ण, नहीं पुकारोगी तुम कातरता से किसी को सहायता के लिए, खुद ही उठाओगी शस्त्र अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए।
तुम्हें होना होगा आत्मनिर्भर न सिर्फ आर्थिक दृष्टि से बल्कि मानसिक रूप से भी क्योंकि कोई भी लड़ाई मन से मजबूत हुए बगैर नहीं लड़ी जा सकती। तुम्हें समझनी होगी अपने चारों ओर रच दिए गए चक्रव्यूह की संरचना, अभिमन्यु नहीं बनना है तुम्हें जिसे घेरकर मार डाला जाए। तुम्हें तोड़ना है यह चक्रव्यूह बिना अपनी आत्मा म्लान किए हुए बिना अपना मन जख्मी किए, पार करना है हर द्वार और निर्मित करना है एक सुरक्षित मार्ग हर स्त्री के लिए। रीति -रिवाजों के नाम पर तो कभी मर्यादा की लकीर खींचकर, अनेक लक्ष्मण रेखाएं खींची गई है तुम्हारे चारो ओर, लक्ष्मण रेखा लांघने के पहले तुम्हें पहचानना होगा उस पार घात लगाए बैठे रावण को। वार करना होगा उसके दसों शीश पर बिना कोई देर किए, बिना किसी की सहायता की प्रतीक्षा किए। सोचो कभी क्यों सारे सवाल ठहर जाते है तुम्हीं पर आकर क्या तुम्हें किसी से सवाल करने का अधिकार दिया जाता है। तुम्हें इस सवालों की गठरी को अपने कंधो से उतार फेंकना होगा। जवाब मांगने होंगे तुम्हें आंखो में आंखे डालकर इन ठेकेदारों से भी जो खुद को सवालों के परे समझते आए है।
समर्पण के नाम पर तुमसे तुम्हारी आखिरी ख्वाहिश, पहला प्रेम सब कुछ तो मांग लिया जाता है। तुम्हारे सपनों का कोई मोल कहां होता है, अनमोल सपने तुम्हारे बेमोल बिक जाते है। अपने सपनों में इंद्रधनुषी रंग भरो तुम और एक भी रंग धुंधला नहीं पड़ने देने का संकल्प लो, एक भी रंग को समर्पित नहीं करोगी तुम किसी भी तथाकथित दोगली परंपरा के लिए। तुम्हारे सपनों में हो ऊंची -लंबी उड़ानें, इसके लिए तुम्हें करने होंगे अपने मन के पंख सुदृढ़ ताकि तुम्हारे सपनों के आसमां को कोई छीन न पाए तुमसे। एक पुत्री, एक पत्नी, एक मां के तौर पर दुनिया से लड़ जाती हो तुम और हर दायित्व बखूबी निभाती हो, तो स्वयं के लिए दायित्वों को पहचानो और उन्हें पूरा करने हेतु अग्रसर हो जाओ एक सफल इंसान बनो और समाज को नई सूरत प्रदान करो। ये भार तुम पर कुछ ज्यादा है क्योंकि तुम रचियता हो तो तुम्हें रचने होंगे अपने नियम, कायदे -कानून। अपने विरुद्ध इस युद्ध की निर्णायक तुम स्वयं बनने का साहस करना होगा….

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