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Sunday, November 24

कबीर की कविता…सबसे दुःखी कौन है ?

थार में जल को तरसती रेत
विवशताओं से उपजे डकैत
रंगरभेद से लड़ते हुए अश्चेत
या मुक्ति को तरसते हुए प्रेत ?
मैं कहता हूँ कोई नहीं
हाँ कोई नहीं ।
सबको आशा है एक दिन सब कुशल हो जाने की
और इसी आस से सदा रहेंगे वे सुखी ।
सबसे सुखी कौन है ?
पानी लिए हुए समंदर
बंदीगृह लेकर दास अंदर
असुरों के घर तोड़ता पुरंदर
या दुनिया जीतता हुआ सिकंदर ?
मैं कहता हूँ कोई नहीं
हाँ कोई नहीं ।
सबको भय है एक दिन सब आधा हो जाने का
और इसी त्रास से सदा रहेंगे वे दुःखी ।
यह बिल्कुल किसी ब्याहता से प्रेम करने जैसा है
वे लोग मारे हो जाएंगे जो हृदय और मस्तिष्क के समान ग्राही हैं
उन्हें ले डूबेगा
ये द्वंद्व
कि
अनैतिक होकर सुख भोगें
या तार्किक होकर दुःख भोगें ?
अंत में वे सुख और दुःख के ठीक मध्य में प्राण त्याग देंगे
और छोड़ जाएंगे अपने पीछे एक अजर-अमर बहस
सबसे सुखी कौन है ?
सबसे दुःखी कौन है ?

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