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Sunday, November 24

काव्य-रंग… सोने री सांकळां भागआळी बीनणी डॉ. मोनिका शर्मा

1- सोने री सांकळां

पीर कै आंगणै मांय
चिड़कली सी
चिंचाती लाडली
मांडा तलै आंवता’ईं
टाबरपणों छोड दियो
अर सात फेरा लेवतां’ई
सुघड़ समजआळी
बीनणी बणगी
बणी-ठणी
अर सिणगार करयोड़ी
दरपण रै सामी बैठ्योड़ी
जद घणा गौर सूँ
निरख्यो
बा आपरा रूप नैं, तो
अंतस मैं झाँकणै लागी
फेर गिण-गिण’र
बातां बिचारणै लागी
तो बीनैं बीको’ई
रूप फीको सो लाग्यो
अर बा सोच्यो
कै आं सोना री सांकळां मैं
म्हारी मुळकती-ढुळकती
छिब कठे गुमगी
सोवणा मंडाण आळा
गैणागांठी मैं बंधगो
म्हारो डील अर
आत्मा जाणै
किण पासै
खिंडगी………

2- भागआळी बीनणी

सासरै री कांकड़ मांय
पग धरतां’ईं
नुंवीं बीनणी का
भाग री बातां चालगी
चोभींती हेली की साळां रा
ओडालेड़ा कुवांडां रै ओलै बी
बीका चोखा- बुरा पगफेरा री
घणी’ईं चरचा चाली
आडै- बाडै सगळा बतळाया
बिकी तगदीर का
लिख्योड़ा लेखा नै
बाँचबा को जतन घर-बार, गाँव-गुवाड़ का
सगळा’ईं मिनख करयो
पण बातां तो हुयी’ई कोनी
बां गुण सिंस्कारां अर पोथी पानड़ा री
बीनणी री बी फढ़ाई -लिखाई की
जिका गुणां नै हेरतां हेरतां
सासरै आळा बीका पीर का
फळसा ताणी आ पूंच्या
अर बा बावळी बी दिन की कह्योड़ी
बाताँ नै साँची मान’र
ठाडा जतन सूं सँभाळ’र सागै बाँध ल्याई
नुंवां रिस्ता-नातां री समज , पुराणी पोथ्यां
एक कलम अर थोड़ी सी स्याई।

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