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Saturday, November 23

बीकानेर की कचौड़ी नहीं खाई तो फिर क्या खाया :

-ललित आचार्य

‘कचोली खासूं तो खाली जूनिया महाराज री खासूं,और की री ई कोनी खाऊं’ ये डायलॉग कॉमेडी के एक डब्ड वीडियो में अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बोलते हुए दिखाई देते हैं। ये एक काल्पनिक वीडियो था लेकिन इसमें जो बात कही गई है वो हजारों ही नहीं लाखों लोगों के मन की बात है। बीकानेर जिन चीजों के लिए दुनिया भर में विख्यात है, उनमें बीकानेर की कचौड़ी का नंबर पहला है। कचौड़ी मिलती तो भारत के हर हिस्से में है लेकिन जो स्वाद बीकानेरी कचौड़ी में है, वो और कहीं भी नहीं मिलता। बीकानेर की चायपट्टी दुनिया में उतनी ही मशहूर है जितनी कि मुम्बई की चौपाटी। चायपट्टी उस एक संकड़ी गली का नाम है जो सुबह पांच बजे गुलजार होती है तो रात के बारह बजे तक भी यहां लोगों की चहल पहल दिखाई देती है। चायपट्टी उन लोगों के लिए किसी तीर्थ से कम नहीं जो कचौड़ी, पकौड़ी, समोसा आदि नमकीनों के साथ ही देशी घी की मिठाइयों के शौकीन हैं। बीकानेर में सैकड़ों लोग ऐसे हैं जिनके दिन की शुरुआत चायपट्टी में जूनिया महाराज की गरमागर्म कचौड़ी से ही होती है। किसी जमाने में लोहापट्टी के नाम से मशहूर चायपट्टी घी पट्टी के नाम से भी पहचानी गई थी लेकिन इस ‘चायपट्टी’ नाम ने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध कर दिया है।

चालीस हजार कचौड़ी रोज बिकती है बीकानेर में


बीकानेर में कचौड़ी के अनेक शौकीन और कचौड़ी के कई पुराने कारीगर बताते हैं कि बीकानेर में लगभग चालीस हजार कचौड़ी की प्रतिदिन की खपत है। ब्रेड पकौड़ा, मिर्चीबड़ा, पकौड़ी, दहीबड़ा, कांजीबड़ा और दाल पकौड़े की खपत अलग है। कचौड़ी- समोसा बीकानरी लाइफस्टाइल का अभिन्न अंग हैं। यहां के लोग सुबह के नाश्ते में पोहे, परांठे, दूध, ब्रेड आदि की बजाय कचौड़ी, पकौड़ी और समोसे आदि का नाश्ता ज्यादा पसंद करते हैं।बहुत सारे लोग तो ऐसे हैं जो चायपट्टी में कचौड़ी की कढ़ाही के आगे पावा निकलने का इंतजार करते देखे जाते हैं। कई वर्षों पहले बीकानेर में जोधपुरी नमकीन की अनेक दुकानें खुली थी लेकिन बीकानेरी कचौड़ी के स्वाद ने उन्हें ज्यादा टिकने नहीं दिया। बीकानेर में कचौड़ी की कुछ प्रसिद्ध दुकानें तो ऐसी हैं जिनमें पावा निकलते ही हाथोंहाथ बिक जाता है। हालांकि बीकानेर में कचौड़ी के रसिये मई- जून की भीषण गर्मी में भी कचौड़ी के बिना नहीं रह पाते हैं किंतु सर्दियों, बरसात और श्राद्ध पक्ष में कचौड़ियों की खपत डेढ़ गुना तक बढ़ जाती है। अगर आप बीकानेर से बाहर के हैं और अभी तक बीकानरी कचौड़ी से मुलाकात नहीं हुई है तो अगली बीकानेर यात्रा में कचौड़ी का स्वाद जरूर चखिएगा। क्योंकि अगर आपने बीकानेर की कचौड़ी नहीं खाई तो फिर क्या खाया ?

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