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Saturday, November 23

तलाक मामले में महिला को सुप्रीम कोर्ट से राहत:20 हजार रुपए प्रतिमाह भत्ता देगा पति, तीन जजों की बैंच ने सुनाया फैसला

अभिनव टाइम्स बीकानेर। अजमेर की मुस्लिम महिला को सुप्रीम कोर्ट ने राहत दी है। निचली अदालत में लंबित मामले के निपटारे होने तक मुस्लिम महिला के पति शाहिद-उल-हक चिश्ती को गुजारा भत्ता के रूप में बीस हजार रुपए प्रति माह देने के आदेश दिए गए है।

यह फैसला जस्टिस एस.के कौल, जस्टिस अभय एस. ओका, जस्टिस विक्रम नाथ की तीन जजों की बेंच ने सुनाया। याचिकाकर्ता मुस्लिम महिला के लिए सुप्रीम कोर्ट में पैरवी वकील सुनील कुमार सिंह ने की।

एडवोकेट सुनील सिंह ने बताया कि 8 मार्च 1998 को मुस्लिम महिला राणा नाहिद ने अजमेर के शाहिदुल हक चिश्ती से शादी की। 16 अक्टूबर 2000 को उस विवाह से एक बच्चे का जन्म हुआ। बाद में पति ने 23 अप्रैल 2005 को मुस्लिम परंपरागत तरीके से पत्नी को तलाक दे दिया। इसलिए 24 मार्च 2008 को पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का आवेदन फेमिली कोर्ट में दायर किया। 8 दिसम्बर 2008 को फैमिली कोर्ट ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत आवेदन स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने बेटे के लिए 2000 प्रति माह भरण पोषण जब तक वह वयस्क नहीं हो जाता और तीन लाख एक मुश्त रखरखाव के रूप में देने के आदेश दिए।

बाद में राजस्थान हाईकोर्ट ने 28 जुलाई 2010 को पति की पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार कर लिया और पत्नी के पुनरीक्षण को खारिज कर दिया। मजिस्ट्रेट के समक्ष मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 3 के तहत एक आवेदन दायर करने का आदेश दिया। बाद में 08 सितम्बर 2014 को राजस्थान उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने अंतरिम भरण पोषण को दो हजार से सात हजार कर दिया। लेकिन पति ने 2018 से भरण-पोषण देना बंद कर दिया।

ऐसे में पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की, जिस पर खंडपीठ ने 18 जून 2020 को असहमतिपूर्ण राय दी और मामला बड़ी पीठ को भेजा गया। 22 सितंबर 2022 को मामला सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया। लंबी सुनवाई के बाद पीठ ने पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया और अंतरिम गुजारा भत्ता के रूप में एक लाख रुपए देने का आदेश दिया। साथ ही निचली अदालत में लंबित मामलों का निपटारा होने तक 20 हजार रुपए प्रति माह देने का आदेश सुनाया है। इस मामले में यह भी तय होगा कि कोई फैमिली कोर्ट मुस्लिम पत्नी से जुड़े मामलों की सुनवाई कर सकता है? मामले की अगली सुनवाई की तारीख तय नहीं है।

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