दीपक शर्मा, योगाचार्य
प्राणायाम का अर्थ- प्राणायाम अष्टांग योग के आठ अंगो में से एक है महर्षि पतंजलि प्रणीत अष्टांग योग का चैथा अंग प्राणायाम हैं। प्राणायाम दो शब्दों से मिलकर बना है-‘प्राण और ‘आयाम’। ‘प्राण’ से तात्पर्य शरीर में समचरित होने वाले वायु (जीवनी शक्ति) से है तथा आयाम का अर्थ नियमन/नियंत्रण से है। इस प्रकार प्राणायाम से तात्पर्य श्वास-प्रश्वास की क्रिया पर नियंत्रण करने से है। जिसका अभ्यास करने से सम्पूर्ण शरीर स्वस्थ एवं निरोगी रहता है। हठयोगप्रदीपिका में प्राणायाम के संबंध में कहा गया है कि-
चले वाते चलं चित्तं निश्चले निश्चलं भवेत्।
योग स्थाणुत्वमाप्रोन्ति ततो वायुं निरोधयेत् !!
अर्थात् प्राणों के चलायमान होने पर चित्त भी चलायमान हो जाता है और प्राणों के निश्चल होेने पर मन भी स्वतः निश्चल हो जाता है अतः योगी व्यक्ति को श्वासों पर नियंत्रण करना चाहिये। श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है।
प्राणायाम करने से पूर्व सामान्य नियम/सावधानियां-
प्राणायाम करने का स्थान स्वच्छ एवं हवादार होना चाहिए। यदि खुले स्थान में अथवा जल (नदी, तालाब आदि) के समीप बैठकर अभ्यास करें, तो सबसे उत्तम है। शहरों में जहाँ पर प्रदुषण का प्रभाव अत्यधिक हो, वहाँ पर प्राणायाम करने से पहले घी का दीपक, नेचुरल अगरबत्ती या धूपबत्ती जलाकर उस स्थान को सुगन्धित करने से बहुत अच्छा रहता है। प्राणायाम करने से पूर्व हमारा शरीर अन्दर एवं बाहर से शुद्ध होना चाहिए अर्थात् शौचादि प्रक्रिया से निवृत होकर करना चाहिए। प्राणायाम करते वक्त बैठने के लिए आसन के रूप में कम्बल, दरी, चादर, रबरमैट अथवा चटाई का प्रयोग करें। प्राणायाम के लिए सिद्धासन, सुखासन, वज्रासन एवं पद्मासन किसी भी आसन में मेरूदण्ड को सीधा रखकर बैठे, मगर जिसमें आप अधिक देर तक आसानी से बैठ सकते हैं, उसी आसन में बैठें। प्राणायाम करते समय हमारे शरीर में किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए साथ ही अपनी शक्ति का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए, अर्थात् अपने शरीर के सामथ्र्य के अनुसार ही अभ्यास करना चाहिए। जिन लोगो को उच्च रक्त-चाप, अस्थमा की शिकायत है, तो उन्हें प्राणायाम थोडी धीमी गति से करना चाहिए। यदि किसी भी प्रकार की कोई सर्जरी/आॅप्रेशन हुआ हो तो कम से कम 3 से 6 माह बाद ही इसका अभ्यास करें, श्वास सदा नासिका से ही लेना चाहिए। प्रत्येक श्वास के आने जाने के साथ ही मन ही मन ओम् का जाप करने से आध्यात्मिक, शारीरिक लाभ एवं प्राणायाम का लाभ दुगुना होता है। इसी के साथ ही प्राणायाम करने वाले व्यक्ति को अपने आहार-विहार, आचार-विचार पर भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। सदैव सात्त्विक एवं चिकनाई युक्त आहार का सेवन न करें, फल एवं उनका रस, हरी सब्जियां, दूध, घी इत्यादि का सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद हैं।
दैनिक जीवन में अति उपयोगी एवं लाभकारी प्राणायाम:- प्रमुख रूप से आठ प्रकार के प्राणायाम हमें अपने दैनिक जीवन में अवश्य करने चाहिए, वे इस प्रकार हैं- 1. भस्त्रिका 2. कपालभाति 3. बाह्य 4. उज्जायी 5अनुलोम-विलोम 6. भ्रामरी 7. उद्गीथ 8. प्रणव प्राणायाम ।
प्रमुख प्राणायामों में कपालभाति प्राणायाम का महत्व-
कपालभाति प्राणायाम-
विधि- कपालभाति में मात्र रेचक (श्वास बाहर छोड़ना/निकालना) पर ही पूरा ध्यान दिया जाता है। पूरक अर्थात् श्वास लेने के लिए प्रयत्न नहीं करते, अपितु सहज रूप से जितना श्वास अन्दर चला जाता है, जाने देते हैं, पूरी एकाग्रता श्वास को बाहर छोड़ने में ही होती है। ऐसा करते हुए स्वाभाविक रूप से उदर में भी आकुचन और प्रसारण की क्रिया होती है।
एक सेकेन्ड में एक बार श्वास को लय के साथ छोड़ना एवं सहज रूप से धारण करना चाहिए। इस प्रकार बिना रूके एक मिनट में 60 बार तथा पाँच मिनट में 300 बार कपालभाति प्राणायाम होता है। स्वस्थ एवं सामान्य रोगों से ग्रस्त व्यक्ति को कपालभाति 15 मिनट तक अवश्य करना चाहिये। 15 मिनट में 3 आवृत्तियों में 900 बार यह प्राणायाम हो जाता है।
सावधानी- पेट की शल्यक्रिया के लगभग 3 से 6 महीने के बाद ही इसका अभ्यास करें। गर्भावस्था, अल्सर एवं मासिक धर्म की अवस्था में इस प्राणायाम का अभ्यास न करें। उच्च रक्त-चाप के रोगी 1 मिनट में 40 बार ही स्ट्रोक लगाने चाहिए।
लाभः- मोटापा, मधुमेह, गैस, कब्ज, अम्लपित्त, खुन की कमी, पथरी, गुर्दे तथा प्रोस्टेट से सम्बद्ध सभी रोग निश्चित रूप से दूर होते हैं। हृदय की धमनियों में आये हुये अवरोध खुल जाते हैं। डिप्रेशन, भावनात्मक असन्तुलन, घबराहट, नकारात्मकता आदि समस्त मनोरोगों से छुटकारा मिलता है।
इस प्राणायाम के अभ्यास से आमाशय, अग्न्याशय (पेन्क्रियाज), लीवर, प्लीहा व आँतों का आरोग्य विशेष रूप से बढ़ता है। इसी के साथ मात्र कपालभाति प्राणायाम का अभ्यास करने से शरीर की 90 प्रतिशत से अधिक रोगों से छुटकारा पा सकते हैं। स्वस्थ रहेंगे मस्त रहेंगे, जन-जन का हो गाना, योग करेंगे रोज करेंगे, सबको ये बतलाना। करो योग रहो निरोग।